औरत, आदमी और छत , भाग 15
भाग,15
बस अपनी गति से भाग रही है, सबकुछ जैसे पीछे छूटता जा रहा है। वक्त में भी शायद बस की तरहं पहिये ही लगे होते हैं,सब कुछ पीछे छूट जाता है,अभी कल ही की तो बात है मुझे सड़क पर एक लड़की मिली थी और फिर हम इतने करीब हो गए कि उसकी दूरी से एक खालीपन सा आ गया है जीवन में। मैं क्या कन्नु भी रोज उसके फोन का इतंजार करती और उसे गालियाँ देती, फोन भी नहीं कर सकती,आने दो बात ही नहीं करूंगी, यार ऐसी तो नहीं थी मिन्नी, कहीं किसी दिक्कत या परेशानी में तो नहीं।
कन्नु शायद उसे बहुत करीब से जानती है मुझ से भी बहुत ज्यादा करीब से, तभी तो उसे लगा कि वो किसी दिक्कत में है नही तो फोन जरूर करती।आज घर पहुंच कर शाम को फोन करके कन्नु को मिन्नी की खबर जरूर दूंगी। वीरेंद्र को फोन करू, शायद नहीं करना चाहिए, बहुत परेशान हो जायेंगे, और फिर मिन्नी का एड्रेस भी नहीं है मेरे पास सिवाय शहर के नाम के।शायद मिन्नी खुद उन्हें फोन करले मैने उनका नम्बर तो दे ही दिया था उसे।
विचारों के समंदर में से उतरते निकलते मेरा शहर आ गया था।
मैने घर के लिए रिक्शा ले ली थी।
दो दिन कैसे बीत गए थे पता ही नहीं चला था, माँ इस बार भी मेरी अच्छे घी से भी अच्छी सहेली के लिए खाना डाल रही थी।
,रहने दो माँ, वो वहाँ नहीं है।
घर गई है क्या अपने?
घर---काशः उसका भी कोई घर होता, मैं बड़बड़ाई थी शायद।
क्या हुआ छोरी कहाँ ग ई तेरी सहेली जो इतनी उदास हो रही हो।
अरे कहीं नहीं माँ ,वो आफिस़ की तरफ से ट्रेनिंग पर ग ई है एक महीने के लिए इंदौर।
तो बेटी ऑफिस का काम तो करना पड़ेगा, कब आएगी?
इस महीनें के आखिर तक आ जायेगी शायद।
कोई ना दिन कितने रह गए इस महीनें के।तुम दोनों का ज्यादा ही मन मिल गया है शायद।
हाँ माँ बिल्कुल बहन की तरहं।
माँ मुस्करा दी थी।
मैं सीधे आफिस़ ही आ गई थी। शाम को कन्नु मिली थी ,चल कमरे में ही आती हूँ।।
दस मिनिट बाद वो कमरे में ही आ गई थी।
नीरजा वीरेंद्र भाई आये थे।वो वीरेंद्र को भाई ही कहती थी।
क्या कह रहे थे ।तुमने कुछ बताया तो नहीं।
उसकी हालत बहुत खराब थी यार मैने बता दिया कि तेरे पास फोन आया था और वो ठीक है ,इस महीने के अंत तक आ जायेगी।मैने उसके एक्सीडेंट के बारे में कुछ नही बताया
ठीक किया वरना वो परेशान होते। एक बात् है कन्नू ,
क्या?
कुछ नहीं ।
अब बोलो भी गी या?
जब मिंन्नी का फोन आया तो मैने उसे वीरेंद्र का मोबाईल नम्बर भी दे दिया था,जो वो शनिवार को ही देकर गए थे।पर मिन्नी ने उनसे बात नहीं की, लगता है बहुत ज्यादा नाराज है वो उनसे।
नहीं नीरजा मैं जानती हूँ मिन्नी को,वो ऐसा जीवन चाहती है कि कोई भी अंगूली उसकी तरफ न उठे,और इधर वीरेंद्र के भाई भाभी की दखलंदाजी से उसे शायद बहुत ज्यादा चोट पहुंची हो और इस का विकल्प उसने यही निकाला हो कि वो अपने और वीरेंद्र के बीच एक लक्ष्मण रेखा खीच ले।
ठीक कहती हो,यही हुआ है।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई थी,और एक तीस पैतीस वर्षीय महिला दरवाजे पर थी।उन्होंने हाथ जोड़े थे ।हमने भी हाथ जोड़ दिए थे।
मैं वीरेंद्र की दीदी हूँ। आप नीरजा हैं।
नमस्कार दीदी मैं नीरजा हूँ। ये मेरी दोस्त कन्नु है।
कन्नु ने भी उन्हें नमस्ते किया और चाय बनाने चली गई।
नीरजा मिन्नी कहाँ है, वीरेंद्र की हालत बहुत खराब है,उसनें काम धंधा देखना बिल्कुल बंद कर दिया है। मुझे तो परसों ही ये सब पता चला कि मेरी भाभी ने यहाँ आकर मिन्नी के साथ बद्सलूकी की और उस के बाद से मिन्नी कहीं चली गई है।
दीदी मिन्नी ठीक है अभी दो दिन पहले ही उसका फोन आया था, मैने उसे वीरेंद्र जी का नम्बर भी दिया था,पता नहीं उसनें क्यों बात नहीं की। शायद वो भाभीजी की बदसलूकी के कारण वो इस रिश्ते से दूर जाना चाह रही हो।
तभी कन्नु चाय ले आई थी अपने कमरे से।
दीदी पहले चाय पी लो ठंडी हो जायेगी।
तुम तो वहीं कन्नु हो न जो एक गोत्र की वजह से हमारी बहन लगी। वीरेंद्र ने बताया था। आज सुबह तुमनें ही उसे बताया था, मिन्नी के बारे में।
जी दीदी।
तभी नीचे से नीरजा फोन है की आवाज आई थी।
मैने दीदी को बोला,आप भी नीचे आ जायें शायद मिन्नी का ही फोन होगा, क्योंकि घर से तो मैं आज ही आई हूँ।
हम नीचे आ गये थे।
हैलो
नीरजा मिन्नी बोल रही हूँ, कैसी हो।
मैं ठीक तूं बता कैसी है, मैने दीदी को इशारा कर दिया था कि फोन मिन्नी का ही है।
कन्नु कैसी है।
ठीक है मेरे पास ही ख ड़ी है, ले बात कर।कन्नू से पहले ही फोन दीदी ने पकड़ लिया था।
मिन्नी दीदी बोल रही हूँ तुम्हारी ,वीरेंद्र की बड़ी बहन।
नमस्ते दीदी।
कहाँ हो, तुम्हें पता है वीरेंद्र की क्या हालत हो गई है,काम धंधा सब ठप्प, रोज तुम्हारे हॉस्टल के चक्कर लगाता है फिर जाकर वहीं ऑफिस में पड़ जाता है। क्यों कर रही हो तुम ऐसा, क्या गलती है वीरेंद्र की।भाभी ने तुम्हें कुछ कहा है तो, मैं माफी माँगती हूँ उस की तरफ से।
दीदी मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से वीरेंद्र और आप के परिवार में कोई दुराव पैदा हो।
कौनसा परिवार मिन्नी, अब तुम हमारे परिवार से अलग हो क्या।वीरेंद्र ने मुझे सब बता दिया है,कि उसने दीवाली के बाद तुम से कोर्ट मेर्रिज कर ली है।तुम अब बहू हो हमारे घर की और हमें खासकर वीरेंद्र को ये भी पता नहीं कि उसकी बीवी कहाँ है।
पर दीदी मैं तो ट्रेनिंग के लिए आई हुई हूँ।
तो कम से कम उस को फोन तो कर लेती।
दीदी बताया न मैं हालात से बहुत डरी हुई थी, ये तो भगवान का शुक्र है कि इस ट्रेनिंग में मेरा चयन हो गया वरना वीरेंद्र यहाँ नहीं थेऔर आपकी भाभी ने यहाँ भी और मेरे आफिस़ मे भी।
चलो छोड़ो इन बातों को अब, वीरेंद्र से बात कर लो, तुम आ कब रही है।
दो दिन के बाद का रिजर्वेशन हुआ है दीदी।
मैं कल सुबह चली जाऊँगी, तुम्हारे आने के बाद आऊँगी, फिर तुम्हें गाँव लेकर चलूंगी, माँ को भी सब बता दिया है वीरेंद्र ने।
सारी दीदी।
सारी मुझसे नहीं वीरेंद्र से कहो मिन्नी, उसकी हालत बहुत खराब है।नम्बर लिखो उसका। उसने मोबाईल ले लिया है।
मेरे पास है दीदी।
ठीक है फोन रखती हूँ,अपना ध्यान रखना, अपने लिए नही,मेरे भाई के लिए जो तुमसे बेइंतहा मोहब्बत करता है।
नमस्ते दीदी।
हम सब उपर आ ग ए थे।
दीदी आप ने तो ये समस्या इतनी जल्दी सुलझा दी।कन्नु ने मुस्करा कर कहा था।
अगर मुझे और पहले पता चल जाता तो ये समस्या पैदा ही नहीं होनी थी। हमारी भाभी की नजर तो वीरेंद्र की जमीन जायदाद पर है इस लिए तो वो ये चाहती है कि या तो उसकी बहन के साथ रिश्ता हो या हो ही ना।
खैर अंत भला सब भला।
दीदी एक चाय और मैने कहा था।
नहीं नीरजा अब और नहीं बिल्कुल अंधेरा घिर आया है मेरे बच्चे वीरेंद्र के आफिस़ में हैं।उन्हें वहाँ से लेकर फिलहाल हम गाँव जायेंगे। गाँव का भी यहाँ से आधा घंटे का रास्ता है।
और फिर चाय क्यों अगली बार तो मिठाई लेकर आऊँगी।सब साथ में खायेंगे औऱ चाय भी पियेंगे1
क्रमशः
"औरत आदमी और छत"
लेखिका, ललिताविम्मी
भिवानी, हरियाणा।.